सुख-संतोष की देवी मां के पिता गणेश और माता रिद्धि-सिद्धि हैं। रिद्धि-सिद्धि धन, धान्य, सोना, चांदी, मूंगा, रत्नों से भरा परिवार होने के कारण इन्हें प्रसन्न्ता, सुख-शान्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति करने की देवी भी माना गया है। सुख-सौभाग्य की कामना से माता संतोषी के 16 शुक्रवार तक व्रत किये जाने का विधान है।
मां की व्रत-कथा -
एक बुढ़िया थी। उसका एक ही पुत्र था। बुढ़िया पुत्र के विवाह
ज्येष्ठ मास में शुक्ल पक्ष एकादशी को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है। भगवान विष्णु को समर्पित यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करता है। इस दिन गोदान, वस्त्र दान, फल, धार्मिक पुस्तकों का दान करना चाहिए। इस व्रत को करने से सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं और घर में सुख शांति का वास होता है। इस दिन अपने घर की छत पर पानी से भरा बर्तन अवश्य रखें।
हिंदू धर्म में ब्रह्मा, विष्णु और महेश को त्रिदेवों के रूप में पूजा जाता है। ब्रह्मा जी को संसार का रचियता कहा जाता है, वहीं भगवान विष्णु को पालनहार और भोलेनाथ को संहारक माना गया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि पूरी दुनिया में ब्रह्मा जी के केलव 3 ही प्रसिद्ध मंदिर है, जबकि भगवान विष्णु और शिव के बहुत से मंदिर हैं।
पुराणों के अनुसार एक बार ब्रह्मा जी ने पृथ्वी की भलाई के लिए यज्ञ का विचार किया। यज्ञ की
गंगा हमारे लोकमानस में मां हैं। यूं भी हमारे यहां नदी को मां ही माना जाता है, लेकिन गंगा हमारे यहां पवित्रता का एकमात्र प्रतीक है। यह हमारी परंपरा में सिर्फ नदी नहीं है, मां है, आस्था का कल-कल बहता जल है। इसी गंगा के पृथ्वी पर अवतरण के पर्व को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।
प्रतिवर्ष ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को संवत्सर का मुख कहा
महाभारत युद्ध में कौरवों की हार के बाद युधिष्ठिर राजा बने। इसके बाद धृतराष्ट्र और गांधारी भी पांडवों के साथ ही रहे। कुंती इन दोनों का ध्यान रखती थीं, करीब 15 साल तक ऐसे ही चलते रहा। एक दिन धृतराष्ट्र और गांधारी ने वानप्रस्थ यानी वन में तप करने का निश्चय किया और महल के निकल गए। कुंती ने भी इन दोनों के साथ जाना उचित समझा।
इन तीनों के वन में जाने के करीब 3 साल बाद देवर्षि नारद युधिष्ठिर के पास