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धर्म आध्यात्म

धर्म आध्यात्म
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::introtext::
   दक्ष प्रजापति की कई पुत्रियां थी। सभी पुत्रियां गुणवती थीं। पर दक्ष के मन में संतोष नहीं था। वे चाहते थे उनके घर में एक ऐसी पुत्री का जन्म हो, जो शक्ति-संपन्न हो। सर्व-विजयिनी हो। दक्ष एक ऐसी पुत्री के लिए तप करने लगे। तप करते-करते अधिक दिन बीत गए, तो भगवती आद्या ने प्रकट होकर कहा, 'मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूं। मैं स्वय पुत्री रूप में तुम्हारे यहाँ जन्म धारण करूंगी। मेरा नाम होगा सती। मैं सती के

धर्म आध्यात्म
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::introtext::
   एक बार सभी ग्रह एक साथ इकट्ठे हुए और आपस में बाते करने लगे | कुछ विषयों पर बात करते करते वो एक विषय पर आकर रुक गये कि “सबसे सम्मानित ग्रह कौनसा है ” | वो सब आपस में तर्क वितर्क करने लगे लेकिन कोई नतीजा नही निकला इसलिए उन्होंने इंद्र देव के पास जाने का विचार किया | तो सभी ग्रह इंद्र देव के पास गये और वो भी विस्मय में पड़ गये क्योंकि अगर वो किसी को उचा नीचा दिखायेंगे तो किसी भी ग्रह का कोप उन पर गिर

धर्म आध्यात्म
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::introtext::
  कहा जाता हैं कि एक बार रक्षाबंधन के त्यौहार पर भगवान श्री गणेश अपनी बहन के साथ यह त्यौहार मना रहे थे, तभी उनके पुत्रों [शुभ और लाभ] ने भी इस त्यौहार को मनाने की बात कही और अपने पिता से एक बहन की मांग की। भगवान श्री गणेश ने पहले तो मना कर दिया, परन्तु अपनी बहन, पत्नियों रिद्धि और सिद्धि और पुत्रों के बार- बार कहने पर उन्होंने एक कन्या प्रकट की और इस कन्या का नाम संतोषी रखा और इस प्रकार माँ संतोषी का जन्म

धर्म आध्यात्म
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::introtext::
हिंदू मान्यताओं और पुराणों के अनुसार सतयुग, त्रेता और द्वापरयुग के बाद अब पृथ्वी पर कलयुग चल रहा है। यह ऐसा युग है जब धरती पर पाप बढ़ते जाएंगे और लोग धर्म के रास्ते से भटकेंगे। इस युग में अधर्म का ही बोलबाला होगा और इसके अंत के लिए भगवान विष्णु अपने 10वें अवतार कल्कि के रूप में एक बार भी पृथ्वी पर आएंगे और सभी पापियों का संहार करेंगे। पुराणों के अनुसार कलियुग के खत्म होने के साथ बहुत मोटी धारा से लगातार वर्षा

धर्म आध्यात्म
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उत्तर रामायण के अनुसार अश्वमेघ यज्ञ पूर्ण होने के पश्चात भगवान श्रीराम ने बड़ी सभा का आयोजन कर सभी देवताओं, ऋषि-मुनियों, किन्नरों, यक्षों व राजाओं आदि को उसमें आमंत्रित किया। सभा में आए नारद मुनि के भड़काने पर एक राजन ने भरी सभा में ऋषि विश्वामित्र को छोड़कर सभी को प्रणाम किया। ऋषि विश्वामित्र गुस्से से भर उठे और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि अगर सूर्यास्त से पूर्व श्रीराम ने उस राजा को मृत्यु दंड नहीं दिया तो

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