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प्रिय युवाओं, सादर वंदे, अवसरवादी आपकी शक्ति को पहचान रहे हैं। वे उस शक्ति का दुरुपयोग करना चाह रहे हैं और बहुत हद तक सफल भी है। आपके पास उपलब्ध समय को लूट लेना चाह रहे हैं और लूट भी रहे हैं। उन अवसरवादियों को यह संदेश देने का समय आ गया है कि झूठ के मायाजाल में फंसाकर अब युवाओं दुरुपयोग नहीं किया जा सकता।
अवसरवादी समझते हैं कि नकारात्मकता  हमेशा  तेजी से पैर फैलाती क्योंकि निंदा में आनंद की अनुभती लेना मानवीय कमजोरी होती है। वे लगातार निंदा रुपी झूठ प्रवाहित करते रहते हैं। युवा उसका आनंद लेने लगते हैं। ये निंदा रुपी झूठ कब धीरे से नफरत का रुप ले लेती है उसे युवा समझ नहीं पाते। इसका पूरा फायदा अवसरवादी उठा लेते हैं।
विश्व के कई देश राष्ट्रवाद, धर्मवाद, जातिवाद, क्षेत्रवाद, नस्लवाद ईत्यादि की भट्टी में जल रहे हैं। भारत में भी ऐसी भट्टी निरंतर सुलगाई जा रही है। चारों ओर नजर घुमा कर देखो तो इस भट्टी जलता हुआ अंगार युवा दिखाई देते हैं और इस भट्टी के अंगार को हवा देने वाले सिर्फ और सिर्फ अवसरवादी। 
आखिर ऐसी क्या कमजोरी है जो युवा को बड़ी आसानी से भटका देती है? वह कमजोरी है युवाओं में आत्म चिंतन व अध्ययन का आभाव। इन आभावों के कारण युवा सत्य व असत्य में अंतर नहीं कर पाते और फायदा अवसरवादी उठा ले जाते हैं।
आप असीम ऊर्जावान है यह बात समझिये। दृढ़-निश्चय शक्ति का प्रवाह अपने में उत्पन्न कीजिये। यह बातें आपको सफलता के द्वार तक ले जायेगी। निराशा से ऊपर उठायेगी। व्यवस्थाओं के ऊपर आपके दवाब को बढ़ायेगी। स्वार्थी तत्वों का कोई भी एजेण्डा आपमें समाहित ऊर्जा लूट नहीं सकेगा। आपको अपने घृणित उद्देश्यों की पूर्ति का हथियार नहीं बना सकेगा।
आप को समझना होगा जब तर्क जवाब देने लग जाएं तब जनमत जुटाने के दो बहुत ही सरल मार्ग है।
पहला – नफरत रुपी झूठ फैलाओ या बदनाम कर दो।
दूसरा – राष्ट्रवाद व धर्मवाद जैसे पवित्र शब्दों के इर्द- गिर्द मायाजाल गढ़ दो।
इन से बचना बहुत जरूरी है। जब भी आपके समक्ष इन दो बिंदुओं से संबंधित विषय सामग्री आती है तो आपको तत्काल समझ जाना चाहिए कि जिस किसी ने भी इस सामग्री को प्रचार प्रसार के लिए आगे भेजा है उसकी मंशा हमारी ऊर्जा का दुरुपयोग करने की है, ना कि नव-निर्माण करने की।
ये बातें अवसरवादियों को मुकाम तक तो तेजी से पहुंचाती है लेकिन उस पर टिका रहना मुमकिन नहीं होता। दुर्भाग्य यह है कि फायदा लेने वालों के लिए टिके रहना मायने नहीं रखता। वे लोग सैकड़ों साल तक याद रखें जायें यह उनका उद्देश्य नहीं रहता। उनका लक्ष्य रहता है सिर्फ तात्कालिक निजी स्वार्थ, जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा युवाओं को भुगतना पड़ता है।
इतिहास गवाह है समाज जब दो भागों “हां” और “ना” के बीच बंटा हुआ दिखाई दे तो उस समय नव युवाओं की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि आगे बढ़ने की राह उन्हीं में निहित विचारों से निकल कर आती है। 
राग द्वेष और विद्वेष का वाहक नव युवा कभी नहीं हो सकता और उसे होना भी नहीं चाहिए।  नफरत रूपी विसंगतियां वे अवसरवादी लोग फैलाते हैं जिनका उद्देश्य समाज को देने का नहीं बल्की नेतृत्व-कर्ता बनकर लूटना रहता हैं।
आपकी जरा सी सतर्कता अवसरवादियों के मंसूबे फेल कर सकती है। बस इतना ही करना है कि जो व्यक्ति नफरती या हीन भावना का प्रचार कर रहा है उसके उपर एक दृष्टि डालें की अगर वह नेतृत्वकर्ता है तो उसका क्या त्याग है? अगर वह प्रचारक है तो उसका क्या स्वार्थ है?
अगर इन दो छोटी सी बातों पर आपने ध्यान दे दिया तो यकीन मानिए दुनिया की कोई ताकत आप में भटकाव नहीं ला सकेगी।
 
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