खबर वर्ल्ड न्यूज-राकेश पांडेय-जगदलपुर। छत्तीसगढ़ राज्य वर्ष 2000 में बना तब बस्तर काे नक्सलवाद विरासत में मिला था। उस दाैरान बस्तर संभाग के जंगलों में सिर्फ नक्सलियों की चला करती थी। अब 25 वर्ष बाद तस्वीर बदल चुकी है। राज्य गठन के 25 वें साल यानी रजत जयंती वर्ष में बस्तर उस अंधेरे दौर से निकलकर शांति के उजले की ओर लौट रहा है। केंद्र एवं राज्य सरकार ने मार्च 2026 तक नक्सलवाद खत्म करने का लक्ष्य तय किया था, लेकिन 2025 में ही इस दिशा में बड़े बदलाव दिखने लगे हैं। ‘पूना मारगेम’ जैसी पुनर्वास योजनाओं और लगातार संवाद की नीति से अब जंगलों में डर नहीं विश्वास और विकास की हवा बह रही है। सालों बाद बस्तर के गांव आबाद होते नजर आ रहे हैं। गांवों में अब रौनक लौट रही है। यह सब बीते 10 महीने में ही बड़े पैमाने पर हुआ है। राज्य रजत जयंती पर प्रदेश के नाम सबसे बड़ी उपलब्धि नक्सलवाद का खात्मा के नाम से इतिहास में दर्ज हाेगा । मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का कहना है कि छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद ने अपनी हिंसक विचारधारा से आम आदमी के जीवन को नरक बना दिया था, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में नई रणनीति बनाकर हमने नक्सलवाद के कैंसर को नष्ट करने का काम किया है। नक्सलवाद को खत्म करने के लिए हमारी निर्णायक लड़ाई तेजी से चल रही है।
वर्ष 2025 नक्सल मोर्चे पर सबसे निर्णायक साबित हुआ, इसी साल नक्सल संगठन का सुप्रीम लीडर और महासचिव बसवा राजू मारा गया, जो नक्सल आंदोलन की रीढ़ माना जाता था। इस एक झटके के बाद नक्सल संगठन की कमर टूट गई । इसी वर्ष जगदलपुर में नक्सल इतिहास का सबसे बड़ा आत्मसमर्पण हुआ, जिसमें 210 नक्सलियों ने एक साथ आत्मसमर्पण किया। इससे पहले और इसके बाद भी बड़े पैमाने पर लगातार नक्सलियाें के आत्मसमर्पण का दाैरा जारी हैं, नक्सल संगठन बिखरता जा रहा है। वर्ष 2025 के पिछले दस महीनों में 1000 से ज्यादा नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। दूसरी ओर, सुरक्षा बलों ने रेकॉर्ड संख्या में मुठभेड़ किए और कई बड़े इलाकों से नक्सलियों का सफाया किया। अबूझमाड़ जैसा नक्सलियों का सुरक्षित पनाहगाह अब नक्सल मुक्त हो चुका है।
राज्य गठन के 25 वर्ष बाद नक्सलवाद का अंत होता दिख रहा है, बस्तर के 500 से ज्यादा गांव अब नक्सलमुक्त हाे चुके हैं, इन 500 गांवों में कई सालों से कोई नक्सली वारदात नहीं हुई है। पुवर्ती, सिलगेर, जगरगुंडा, गोलापल्ली जैसे गांव, जहां दिन में पहुंचना मुश्किल था, अब इन इलाकों में लोग रात में भी सफर कर रहे हैं। बस्तर में नक्सलियो का माड़ डिवीजन, दरभा डिवीजन, उत्तर बस्तर डिवीजन पूरी तरह से खत्म होने की कगार पर है। दंतेवाड़ा, सुकमा में भी नक्सल गतिविधियां थम सी गई हैं। बीजापुर के कुछ गांवों में आंशिक असर अभी बरकरार है। बस्तर में नक्सलवाद की पैठ इसी से समझा जा सकता है कि नक्सलियों ने देश की इकलौती मिलिट्री बटालियन बस्तर में बनाई। नक्सलियों की सबसे खतरनाक बटालियन का नेतृत्व माड़वी हिड़मा ने किया। इस बटालियन ने झीरम, ताड़मेटला जैसी बड़ी वारदातों को अंजाम दिया। बटालियन के हमलों में 500 से ज्यादा जवानों ने शहादत हुई। नक्सलियों के सबसे बड़ी ताकत बनी यह बटालियन अब टूटने की कगार पर है। सुरक्षाबलों के जवानों ने बटालियन के कई लड़ाकों को ढेर कर दिया है। कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया है। बटालियन में जो लोग बचे हैं, वे बस्तर छोड़कर दीगर राज्यों का रूख कर चुके हैं। बस्तर के जिन इलाकों में 25 वर्ष पहले तक सिर्फ जनताना सरकार यानी नक्सलियों की सरकार चलती थी वहां अब लोकतंत्र पूरी तरह से बहाल हो चुका है। अब बस्तर के दूरस्थ सरकारी स्कूलों में बच्चों की खिलखिलाहट गूंज रही हैं। सड़कें बन रही हैं, बिजली पहुंच रही है और बाजारों में फिर से चहल-पहल लौट आई है।
वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ राज्य बना। तब से लेकर अब तक पिछले 25 सालों में बस्तर में पुलिस और नक्सलियों के बीच कुल 3398 से ज्यादा मुठभेड़ हुई। अलग-अलग मुठभेड़ में 1331 जवानों की शहादत हुई है, जबकि, फोर्स ने 1830 से ज्यादा नक्सलियों काे मुठभेड़ में ढेर कर दिया है। वर्ष 2022-23 से पहले तक लगभग 1070 नक्सली मारे गए थे। वहीं पिछले डेढ़ से 2 वर्ष में जवानों ने 420 से ज्यादा नक्सलियों काे मठभेड़ में ढेर कर दिया है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बस्तर में लाल आतंक वर्ष 2007 में तब चरम पर पहुंचा जब बीजापुर के रानीबोदली में नक्सलियों ने सुरक्षाबलों के कैंप घात लगाकर हमला कर दिया जिसमें 55 जवानों बलीदान हाे गये थे। इस घटना में जवानों ने नक्सलियों को मुंहतोड़ जवाब भी दिया था। नक्सलियों से लड़ते हुए जवानों की गोलियां खत्म हो गई थी, जिसके बाद नक्सली कैंप में घुसे और पेट्रोल बम दागना शुरू कर दिया। वर्ष 2010 नक्सलवाद का सबसे विभत्स साल रहा। इसी साल ताड़मेटला में देश की सबसे बड़ी नक्सल घटना हुई थी। यहां नक्सलियों ने जवानों को एंबुश में फंसाया था। नक्सलियों ने जवानों पर अंधाधुंध फायरिंग की थी। इस घटना में 76 जवान बलीदान हुए थे। घटना स्थल का मंजर ऐसा था कि जहां नजर पड़े वहां जवानों की लाश बिखरी पड़ी थी। इसी साल नक्सलियों ने चिंगावरम में एक बस को विस्फाेट कर उड़ाया था, जिसमें 20 जवान बलिदान हुए थे। कुल मिलाकर 2010 में अलग-अलग नक्सल घटनाओं में कुल 171 जवानों ने अपना बलिदान दिया था।
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