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नवीन श्रीवास्तव- वर्षों-वर्षों से यातना झेल रही  समाज की औरतें, कहीं किसी नशेड़ी के भय से थर थर कांप रहे बच्चें, सबकुछ सहने बेबस घर के बुजुर्गों के साथ नशे का बढ़ता कारोबार,हुक्के गुड़गड़ाते, धुंए से कलेजे को छलनी करते युवा ... इसका फैलता भरम जाल.बताता है नशे जैसे बुराई को लेकर  हम अपने ऊपर से नियंत्रण खो रहे हैं और देखिए शहर में लगातार होश के जगह बेहोशी खरीदने वाले कतार में है..तो आत्मनिर्भरता के पोस्टर भी है.. बहरहाल यह तो वे लोग हैं जो दिख जाते हैं कतार में या कहीं और पर ऐसे सफेदपोशों की पहचान नहीं होती जो शराब को जिस्मों पर उंडेलते है सच समाज का एक हिस्सा नशे के गिरफ्त में सुन्न हो रहा है..पर विकास का दौर जारी है ...बढ़िया है जहां तक शराब बंदी की बात है तो नशेबन्दी को लेकर यह ठीक वैसे ही है जैसे किसी कैंसर के मरीज को पैरासिटामोल देने की बात हो रही हो  पर  नशे की लत  व्यापक समस्या है इसके लिए सामुहिक जागरूकता आवश्यक ठीक वैसे ही जैसे नशे की लत से बचने केवल दृढ़ता या इच्छा शक्ति से साथ अपनों का सहयोग चाहिये..नशा कोई से भी हो यह जीवन के लिए ना संगत है ना सहज यह असंगत है असहजता दरअसल असहज जीवनशैली ने नशे के बीज को हमारे बीच बोया है जब तक हम जीवन मे सहज जीवन रस को प्रतिष्ठित नहीं करेंगे यह खर पतवार की तरह इंसानी समाज मे फलता फूलता रहेगा।
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