::cck::15781::/cck::
::introtext::
फ्लोरेंस नाइटिंगेल...उसके पास कुछ कर गुजरने के हौसले की जादूई छड़ी भी थी..
 
नर्सेस डे पर..सामयिक टिप्पणी/नवीन श्रीवास्तव
दर्द से कराहते निराशा के गहरे होते अंधेरे के बीच किसी बीमार या मरीज के  बीच उसके देखरेख के लिए किसी नर्स  की ...मौजूदगी किसी संजीवनी से कम नहीं हो सकता ...आज से लगभग 166 साल पहले  क्रीमिया युद्ध के समय  जब घायल सैनिक.. पीड़ा संक्रमण, निराशा...के गहन अंधेरे से जूझ रहे थे  तब विपरीत परिस्थितियों के बीच  सेवा संकल्पों की वज्र जैसी शक्ति लिए ..हाथों में लालटेन लिए तो कभी मोमबत्ती लेकर  फ्लोरेंस माइटिंगेल उनके बीच होती थी ..वह अपने अदभुत कार्यों को लेकर ..उस काल्पनिक परी से कम नहीं थी ..और उसके पास कुछ कर गुजरने के हौसले की जादूई छड़ी भी थी!  मानव देह को जर्जर ,दुर्बल करने वाले तमाम..रोगों,आसन्न संकटो ..से घायल तन को बचाने समाज को मजबूत बनाती ..नर्सेस  हमारे बीच अभी भी हैं ..खास कर वर्तमान में कोरोना के इस वैश्विक संक्रमण के दौर में..जो हमारे खातिर दिन रात जुटी हैं.. ऐसे में तालियां तो बजनी चाहिये उनके लिए ..नर्सेस के लिए. यह विडंबना से कम नहीं कि  छत्तीसगढ़ प्रदेश में योग्य,सेवा भावना से अपने कार्य को कर रही नर्सो के कई अतिरिक्त समस्याओं पर कभी चर्चा नहीं किया जाता..केवल उन्हें सेवा का मोल. तनख्वाह..देकर सेवा को हम भावनाओं से लम्बे समय तक जोड़ कर नहीं रख सकते ..यह याद रखना होगा.. नर्से किसी भी तरह से व्यवस्था के विसंगतियों में गेहूं के घुन की तरह न पीसी जाएं..इस तरह मानवीय रूप से हम सरकार, समाज अपने देश,प्रदेश के नर्सो का ध्यान रख..उनको उचित सम्मान दे सकते हैं.. ।अंतरराष्ट्रीय नर्सेस डे.. पर शुभकामनाओं सहित..।
::/introtext::
::fulltext::::/fulltext:: ::cck::15781::/cck::