khabarworld24.com - भारत सरकार पर विपक्ष अक्सर आरोप लगाता रहा है कि सरकार की नीतियाँ गरीबों पर भारी पड़ती हैं, जिससे अमीर और गरीब के बीच की खाई और गहरी हो रही है। इस सवाल का गहराई से अध्ययन करने के लिए हमें विभिन्न आर्थिक नीतियों, सरकारी योजनाओं, और उनके प्रभावों को देखना होगा, खासकर कि ये नीतियां और योजनाएं गरीब तबके पर कैसे असर डालती हैं। नीचे इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट दी गई है, जिसमें आंकड़ों और तथ्यों के साथ साक्ष्य प्रस्तुत किए गए हैं: "सरकार गरीबों का खून चूस रही है" जैसी बयानबाजी आमतौर पर उन स्थितियों के संदर्भ में की जाती है, जब जनता को लगता है कि सरकार की नीतियां और योजनाएं गरीबों के हितों के बजाय उनके बोझ को बढ़ा रही हैं। हालांकि, वास्तविक स्थिति यह है कि सरकारें गरीबी उन्मूलन और विकास के लिए अनेक योजनाएं और प्रयास करती हैं, लेकिन इनका प्रभाव और कार्यान्वयन कई बार अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतरता।
इस प्रकार के आरोप तब उभरते हैं, जब निम्नलिखित मुद्दे सामने आते हैं:
1. आर्थिक असमानता में वृद्धि
भारत में अमीर और गरीब के बीच आर्थिक असमानता तेज़ी से बढ़ रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार:
- ऑक्सफैम 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के शीर्ष 1% धनी लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का 40.5% हिस्सा है, जबकि सबसे गरीब 50% आबादी के पास मात्र 3% संपत्ति है।
- गिनी इंडेक्स के अनुसार (जो आर्थिक असमानता मापता है), भारत की असमानता दर 2011 के बाद से बढ़ती जा रही है। 2019 में यह इंडेक्स 35.7 था, जो इस बात का संकेत है कि असमानता काफी ऊँची है।
2. सरकारी योजनाएं और सब्सिडी में कटौती
हाल के वर्षों में, गरीबों के लिए कुछ अहम सरकारी योजनाओं और सब्सिडियों में कटौती की गई है, जिससे उन पर आर्थिक दबाव बढ़ा है। उदाहरण:
- उज्ज्वला योजना के तहत वितरित LPG सिलेंडरों पर सब्सिडी में कटौती की गई। इससे गरीब परिवारों के लिए गैस सिलेंडर की क़ीमतें बढ़ गईं, और उनकी पहुँच इससे दूर होती जा रही है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) के बजट में कटौती की गई है। वर्ष 2023-24 में इसका आवंटन घटाकर ₹60,000 करोड़ कर दिया गया, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी और गरीबी से लड़ने के लिए इस योजना की मांग बढ़ रही है।
3. बढ़ती महंगाई का बोझ
2023 में भारत में महंगाई की दर 6% से ऊपर रही, जो गरीबों पर भारी पड़ रही है। विशेषकर, आवश्यक वस्तुओं जैसे:
- प्याज, टमाटर, दाल और अनाज की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 10-20% तक बढ़ी हैं, जिससे गरीब परिवारों की थाली पर असर पड़ रहा है।
- खाद्य मुद्रास्फीति 2023 में औसतन 7-8% रही, जो गरीब और मध्यमवर्गीय परिवारों पर सीधा असर डाल रही है क्योंकि उनकी आय महंगाई की दर के साथ नहीं बढ़ रही।
4. स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा में खर्च में कटौती
- आयुष्मान भारत योजना जैसी योजनाओं के बावजूद, ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अभी भी एक बड़ी चुनौती है। प्राइवेट अस्पतालों के महंगे इलाज और सरकारी अस्पतालों की कमी के कारण गरीब परिवारों पर कर्ज का बोझ बढ़ रहा है।
- शिक्षा के क्षेत्र में भी, स्कूलों और कॉलेजों की फीस बढ़ने से गरीब तबके के बच्चे उच्च शिक्षा से दूर होते जा रहे हैं।
5. बेरोजगारी और कम आय
- 2023 में भारत की बेरोजगारी दर औसतन 7.5% रही। इसके अलावा, गरीबों की आय में वृद्धि दर बहुत धीमी है। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आय स्थिर या घट रही है, जिससे उनकी क्रय शक्ति कमजोर हो रही है।
6. GST और टैक्स नीति
- जीएसटी का असर गरीब और मध्यम वर्ग पर ज़्यादा हुआ है, क्योंकि आवश्यक वस्तुओं पर भी जीएसटी लागू है। गरीब तबके के लोग इन वस्तुओं के उपभोक्ता हैं, और उनकी जेब पर टैक्स का भार बढ़ता जा रहा है।
- हाल ही में, कुछ विपक्षी दलों ने यह आरोप लगाया कि सरकार बड़े पूंजीपतियों और उद्योगपतियों को टैक्स में छूट देकर गरीबों और मध्यम वर्ग पर टैक्स का भार बढ़ा रही है। उदाहरण के लिए, कॉरपोरेट टैक्स में कटौती की गई, जबकि दैनिक उपभोग की वस्तुओं पर टैक्स का बोझ बढ़ाया गया।
सरकारी योजनाओं और विकास का असमान वितरण:
देश में कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं, जैसे कि 'प्रधानमंत्री आवास योजना', 'आयुष्मान भारत', और 'प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना', जो गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने के उद्देश्य से बनाई गई हैं। लेकिन इन योजनाओं का क्रियान्वयन अक्सर भ्रष्टाचार, जटिल प्रक्रियाओं, और निचले स्तर पर कुप्रबंधन के कारण प्रभावित होता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 2024 में ग्रामीण क्षेत्रों में 30% परिवारों तक योजनाओं का लाभ सही ढंग से नहीं पहुंच पाया, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 20% तक पहुंचा।
कर्ज का बोझ और वित्तीय संकट:
देश के गरीब और किसान वर्ग अक्सर अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज पर निर्भर होते हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक, 2023-24 में ग्रामीण क्षेत्रों में औसतन 40% परिवारों पर कर्ज का बोझ है। महंगे ब्याज दरों और कर्ज चुकाने की बढ़ती दबाव के कारण ये लोग कर्ज के जाल में फंस जाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है। किसान कर्ज माफी योजनाओं के बावजूद, कई राज्यों में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं 2024 में बढ़कर 11% हो गई हैं।
स्वास्थ्य और शिक्षा तक पहुंच की कमी:
सरकार की आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं के बावजूद, गरीब तबके को सही समय पर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं मिल पा रही हैं। 2024 में, ग्रामीण क्षेत्रों में 50% से अधिक परिवारों ने निजी स्वास्थ्य सेवाओं का सहारा लिया, जहां इलाज की लागत सरकारी अस्पतालों की तुलना में 5 गुना अधिक थी। शिक्षा के क्षेत्र में भी, 2024 की रिपोर्ट बताती है कि सरकारी स्कूलों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी के कारण गरीब तबका निजी स्कूलों की ओर जा रहा है, जहां फीस का बोझ उठाना उनके लिए कठिन होता है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार, "सरकार गरीबों का खून चूस रही है" जैसे बयान उन समस्याओं की ओर इशारा करते हैं, जो गरीब तबके की कठिनाइयों और असंतोष को उजागर करती हैं। हालांकि, सरकार ने गरीबों की मदद के लिए कई योजनाएं चलाई हैं, लेकिन इनका प्रभाव अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा है। इसके पीछे नीतिगत विफलता, भ्रष्टाचार, और निचले स्तर पर कुप्रबंधन जैसे कारण हो सकते हैं। इस स्थिति का समाधान तब ही संभव है, जब सरकार अपनी योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता और प्रभावशीलता को बढ़ाएगी और गरीबों तक सीधे लाभ पहुंचाने में सक्षम होगी।
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