khabarworld24.com -भारत में गरीबी की समस्या गहराई से जुड़ी हुई है और यह आर्थिक, सामाजिक और नीतिगत मुद्दों के कारण जटिल होती जा रही है। हाल के वर्षों में, विशेषकर COVID-19 महामारी के बाद, आर्थिक असमानता और गरीबी की दर में तेजी आई है। यह रिपोर्ट भारत में गरीबी की मौजूदा स्थिति, उसके प्रमुख कारणों, और गरीबी उन्मूलन की योजनाओं की प्रभावशीलता पर आधारित है।

गरीबी की वर्तमान स्थिति

भारत में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों की संख्या में हाल के वर्षों में बढ़ोतरी देखी गई है। वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में भारत में 10% से अधिक जनसंख्या गरीबी रेखा के नीचे थी, जबकि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, कोविड-19 महामारी के बाद 4 करोड़ से अधिक भारतीयों ने गरीबी रेखा के नीचे जीवन जीना शुरू किया।

रिपोर्ट बताती है कि महामारी के कारण लगभग 23 करोड़ भारतीय गरीबी रेखा के नीचे चले गए, जिससे आर्थिक असमानता और गरीबी का विस्तार हुआ। इस दौरान असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की आय में भारी गिरावट आई, और बेरोजगारी की दर में 10% से अधिक की वृद्धि हुई।

गरीबी के प्रमुख कारण

1. आर्थिक असमानता:

भारत में आर्थिक असमानता के कारण अमीर और गरीब के बीच खाई लगातार बढ़ रही है। ओक्सफैम की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, देश की कुल संपत्ति का 73% हिस्सा केवल शीर्ष 1% लोगों के पास है, जबकि निचले 50% आबादी के पास केवल 2% संपत्ति है। इस असमानता के कारण गरीब तबके के पास संसाधनों और अवसरों की कमी बनी रहती है।

2. बेरोजगारी और नौकरी की अस्थिरता:

2020 के कोविड-19 लॉकडाउन के बाद भारत में बेरोजगारी दर 11% तक पहुंच गई थी। सीएमआईई (CMIE) के अनुसार, मई 2024 में बेरोजगारी दर 8.5% थी। असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को नौकरी की अस्थिरता का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनकी आय कम हो रही है और गरीबी में वृद्धि हो रही है।

3. शिक्षा और कौशल का अभाव:

एनएसएसओ (NSSO) के आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 35% से अधिक गरीबों के पास स्कूली शिक्षा की पहुंच नहीं है। उच्च शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण गरीब लोग बेहतर रोजगार पाने में असमर्थ रहते हैं, जिससे वे गरीबी के चक्र में फंस जाते हैं।

4. स्वास्थ्य सेवाओं की कमी:

भारत में गरीब लोगों के लिए गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं दुर्लभ हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, लगभग 85% लोग अभी भी अपनी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निजी संस्थानों पर निर्भर हैं। नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2022 के अनुसार, भारत में स्वास्थ्य पर खर्च जीडीपी का केवल 1.5% है। महंगे इलाज और सीमित स्वास्थ्य सेवाओं के कारण गरीब लोग अपने इलाज पर भारी खर्च करते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति और खराब हो जाती है।

5. महंगाई:

महंगाई की वजह से गरीब परिवारों पर आर्थिक दबाव बढ़ रहा है। अगस्त 2024 में, खुदरा महंगाई दर 6.5% तक पहुंच गई थी, जिसमें खाद्य पदार्थों की कीमतों में 8.2% की वृद्धि शामिल थी। खाने-पीने की चीजों, ईंधन, और आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि गरीबों की जीवनशैली को प्रभावित कर रही है।

6. नीतिगत समस्याएं:

भारत में गरीबी उन्मूलन के लिए कई योजनाएं चलाई गई हैं, लेकिन इनमें से कुछ का प्रभाव सीमित रहा है। सामाजिक सुरक्षा योजनाएं और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम, जैसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना, मनरेगा (MGNREGA), और प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY), कई बार भ्रष्टाचार और संसाधनों के अनियमित वितरण की वजह से अपनी पूरी क्षमता से लाभ नहीं पहुंचा पाती हैं।

7. भूमि और संसाधनों तक पहुंच:

विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, भूमि और संसाधनों पर अमीर वर्ग का कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे गरीब किसानों और मजदूरों की आजीविका पर संकट मंडरा रहा है। कृषि संकट और किसानों की आत्महत्याओं के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे ग्रामीण गरीबी की समस्या और जटिल हो गई है।

गरीबी उन्मूलन के प्रयास

भारत सरकार द्वारा कई योजनाएं गरीबी को कम करने के उद्देश्य से चलाई जा रही हैं:

  • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA): यह योजना ग्रामीण इलाकों में रोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए शुरू की गई थी। 2023-24 के बजट में इसे ₹60,000 करोड़ का आवंटन किया गया था।
  • प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY): इस योजना के तहत गरीबों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जाता है।
  • प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY): इसके तहत सरकार का लक्ष्य है कि सभी लोगों को 2025 तक पक्का घर मिले।

निष्कर्ष

भारत में गरीबी की समस्या एक जटिल मुद्दा है, जो आर्थिक असमानता, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, और महंगाई से प्रभावित होती है। सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं के बावजूद, गरीबी में कमी की गति धीमी रही है। गरीबी को स्थायी रूप से समाप्त करने के लिए रोजगार सृजन, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के साथ-साथ आर्थिक असमानता को कम करने के प्रयास किए जाने चाहिए।


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