khabarworld24.com - भारत में दहेज और घरेलू हिंसा के खिलाफ कड़े कानून बनाए गए हैं, जिनका उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा को सुनिश्चित करना है। इनमें से एक प्रमुख कानून भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 498ए है, जो महिलाओं के प्रति क्रूरता और दहेज की मांग के खिलाफ सख्त कार्रवाई करता है। लेकिन हाल के दिनों में यह कानून एक नई बहस का केंद्र बन गया है, खासकर जब से इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या का मामला सामने आया है।
अतुल सुभाष की आत्महत्या और 498ए पर सवाल
इंजीनियर अतुल सुभाष की आत्महत्या ने देश में दहेज विरोधी कानूनों के दुरुपयोग को लेकर बहस छेड़ दी है। अतुल पर उनकी पत्नी और ससुराल पक्ष की ओर से 498ए के तहत केस दर्ज किया गया था। सुभाष के परिवार का आरोप है कि यह मामला झूठा था और इसी मानसिक दबाव के चलते उसने आत्महत्या कर ली।
सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने कई फैसलों में धारा 498ए के दुरुपयोग पर चिंता जताई है। कोर्ट ने कहा है कि "कई मामलों में यह देखा गया है कि धारा 498ए का गलत इस्तेमाल हो रहा है, जिससे निर्दोष पुरुषों और उनके परिवारों को मानसिक और सामाजिक रूप से नुकसान उठाना पड़ता है।"
498ए का उद्देश्य और इसके आंकड़े
धारा 498ए को 1983 में भारतीय कानून में जोड़ा गया था ताकि दहेज और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं को न्याय दिलाया जा सके। इस धारा के तहत अपराध साबित होने पर दोषियों को 3 साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
हालांकि, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़े बताते हैं कि हर साल बड़ी संख्या में 498ए के तहत मामले दर्ज होते हैं। 2022 में लगभग 1,20,000 से अधिक केस दर्ज किए गए थे। लेकिन इन मामलों में से लगभग 70% केसों में आरोपियों को अंततः बरी कर दिया जाता है। इससे यह सवाल उठता है कि क्या कानून का सही इस्तेमाल हो रहा है, या इसका दुरुपयोग हो रहा है।
वैश्विक संदर्भ: अन्य देशों के कानून और परंपराएं
भारत के अलावा दुनिया के कुछ ही देशों में दहेज विरोधी कानून हैं। जैसे कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में दहेज विरोधी कानून लागू हैं, लेकिन इन देशों में अभी भी कई स्थानों पर दहेज प्रथा प्रचलित है।
तुर्की और अन्य मुस्लिम बहुल देशों में मेहर की परंपरा भी प्रचलित है। यहां विवाह के समय पति द्वारा पत्नी को मेहर के रूप में एक निश्चित राशि दी जाती है, जो उसे आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है। इन देशों में दहेज की मांग के चलते हिंसा के मामले न के बराबर सुनाई देते हैं, क्योंकि मेहर का प्रावधान पहले से ही स्थापित होता है।
अफ्रीकी देशों में लोबोला प्रथा
अफ्रीकी देशों में लोबोला नामक प्रथा प्रचलित है, जिसमें वर पक्ष वधू पक्ष को तोहफे और धन देता है। हालांकि, इस परंपरा की वजह से कई बार पुरुषों को कर्ज लेना पड़ता है और शादी करने में कठिनाई होती है। इसके समाधान के लिए कई अफ्रीकी देशों में लोबोला पर नियंत्रण के लिए कानून बनाए गए हैं।
निष्कर्ष: कानून में सुधार की जरूरत
धारा 498ए का उद्देश्य दहेज और घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की रक्षा करना है, लेकिन इसका दुरुपयोग भी एक बड़ी चुनौती बन गया है। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न सामाजिक संगठनों ने इस पर ध्यान देने की जरूरत बताई है ताकि निर्दोष व्यक्तियों को कानूनी परेशानियों का सामना न करना पड़े। इसके साथ ही, कानून को और प्रभावी बनाने के लिए सुधार और जागरूकता की आवश्यकता है ताकि यह अपने वास्तविक उद्देश्य की पूर्ति कर सके।
यह बहस सिर्फ कानूनी पहलू तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी यह सोचने का विषय है कि किस तरह से दहेज प्रथा को जड़ से खत्म किया जा सके और विवाह को दोनों पक्षों के लिए समान और सम्मानजनक बनाया जा सके।
खबर वर्ल्ड24-बालकृष्ण साहू-छत्तीसगढ़