khabarworld24.com - सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि संतान माता-पिता की संपत्ति नहीं है और उन्हें अपनी बेटी की शादी को स्वीकार करना चाहिए। यह टिप्पणी उस याचिका को खारिज करते समय की गई, जिसमें एक लड़की के नाबालिग होने के आधार पर उसके पति के खिलाफ आपराधिक मामला चलाने की मांग की गई थी। याचिका लड़की के माता-पिता द्वारा दाखिल की गई थी, जिन्हें इस विवाह पर आपत्ति थी।
मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि तथ्यों से यह स्पष्ट है कि शादी के समय लड़की नाबालिग नहीं थी और केवल माता-पिता द्वारा रिश्ता न स्वीकारने के कारण व्यक्ति के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी माता-पिता को अपने बच्चे को 'कैद' करने का अधिकार नहीं है।
माता-पिता को संतान की स्वतंत्रता स्वीकार करनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि माता-पिता को अपनी संतानों को अपनी संपत्ति मानने की मानसिकता से बाहर निकलना होगा। मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "आपको अपनी संतान को कैद करने का अधिकार नहीं है। संतान कोई संपत्ति नहीं होती है। आपको अपनी बेटी की शादी को स्वीकार करना चाहिए।"
जन्म प्रमाणपत्र पर विसंगतियों का आरोप
लड़की के माता-पिता ने अदालत में लड़की के जन्म प्रमाणपत्र में विसंगतियों का उल्लेख किया था। उन्होंने यह दावा किया कि उनकी बेटी 16 साल की थी, जब उसकी शादी की गई, और उसके पति ने उसे बहला-फुसलाकर अपहरण किया। इस आधार पर, पुलिस ने व्यक्ति के खिलाफ अपहरण और उत्पीड़न के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया था।
पहले भी अदालत ने दी थी राहत
इस मामले में निचली अदालत ने भी व्यक्ति के खिलाफ चलाए जा रहे मामले को खारिज कर दिया था, लेकिन माता-पिता ने इसे चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि लड़की शादी के समय नाबालिग नहीं थी, और इस प्रकार आपराधिक मामला चलाने का कोई आधार नहीं बनता है।
मामले के आंकड़े और निष्कर्ष
- शादी की तारीख: लड़की के माता-पिता ने दावा किया कि शादी के समय वह 16 साल की थी, जबकि अदालत ने इसे गलत साबित किया।
- आपराधिक मामला: व्यक्ति पर अपहरण और उत्पीड़न का आरोप था, जिसे अदालत ने खारिज कर दिया।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: माता-पिता की याचिका खारिज कर दी गई और उन्हें अपनी बेटी की स्वतंत्रता को स्वीकार करने का निर्देश दिया गया।
यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक मान्यताओं पर भी सवाल उठाता है। अदालत की टिप्पणी से स्पष्ट है कि बच्चों को स्वतंत्र निर्णय लेने का अधिकार है और माता-पिता को उनकी पसंद का सम्मान करना चाहिए।
खबर वर्ल्ड24-बालकृष्ण साहू-छत्तीसगढ़