khabarworld24.com - टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले भारतीय पहलवान बजरंग पूनिया पर राष्ट्रीय डोपिंग रोधी एजेंसी ने कड़ा एक्शन लिया है। 10 मार्च को राष्ट्रीय टीम चयन ट्रायल के दौरान डोपिंग टेस्ट के लिए सैंपल देने से इनकार करने के लिए बजरंग पर चार साल का बैन लगाया गया है। यह फैसला तब आया जब नाडा ने पहले 23 अप्रैल को बजरंग पूनिया को इसी अपराध के लिए निलंबित कर दिया था, जिसके बाद कुश्ती की वर्ल्ड लेवल की संस्था यूडब्लूडब्लू ने भी उन्हें बाद में निलंबित कर दिया था।
भाजपा में शामिल होता तो हट जाते आरोप
यदि बजरंग पूनिया भाजपा में शामिल होते तो क्या डोपिंग के आरोप हट जाते? यह कहना मुश्किल है, क्योंकि डोपिंग का मुद्दा खेल संगठनों और अंतरराष्ट्रीय निकायों द्वारा तय किया जाता है, जिन पर राजनीतिक दलों का सीधा प्रभाव नहीं होता।
हां, यह संभव है कि राजनीतिक संरक्षण से नैतिक और सामाजिक समर्थन बढ़ सकता था, लेकिन डोपिंग का तकनीकी मामला बहुत हद तक वैज्ञानिक जांच और कानूनी प्रक्रियाओं पर आधारित होता है। इसलिए, भाजपा में शामिल होना या किसी अन्य पार्टी से संबंध जोड़ना सीधे तौर पर आरोपों को नहीं हटा सकता है।
बजरंग पूनिया का करियर और योगदान:
बजरंग पूनिया ने भारतीय कुश्ती को एक नई पहचान दी है। वह ओलंपिक पदक विजेता हैं और विश्व चैंपियनशिप में भी कई पदक जीते हैं। उनके करियर की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में शामिल हैं:
- 2020 टोक्यो ओलंपिक में कांस्य पदक
- एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक
- राष्ट्रमंडल खेलों में कई पदक
बजरंग की मेहनत और समर्पण ने उन्हें न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी प्रशंसा दिलाई है। इस बैन के चलते उनके करियर पर बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि 4 साल का बैन उन्हें अगले ओलंपिक 2028 से बाहर कर सकता है।
बैन के प्रभाव:
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खेल पर असर: भारतीय कुश्ती के लिए यह एक बड़ा झटका है, क्योंकि बजरंग पूनिया भारतीय कुश्ती के पोस्टर बॉय हैं। उनकी अनुपस्थिति में देश को ओलंपिक और अन्य अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मजबूत प्रदर्शन करने के लिए अन्य पहलवानों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
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करियर पर प्रभाव: बजरंग पूनिया के करियर पर यह बैन विनाशकारी साबित हो सकता है। 4 साल का बैन उनके पेशेवर जीवन के महत्वपूर्ण वर्षों को कवर करता है, जिसमें वह अपनी सबसे अधिक क्षमता दिखा सकते थे। अगर बैन को नहीं हटाया गया, तो वह 2028 तक प्रतिस्पर्धात्मक कुश्ती से दूर रहेंगे।
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आर्थिक नुकसान: बैन के साथ, प्रायोजक और विज्ञापन अनुबंधों में भी असर पड़ सकता है। बजरंग भारतीय खेलों में एक प्रतिष्ठित चेहरा हैं, और इस तरह के विवाद उनके ब्रांड वैल्यू को भी प्रभावित कर सकते हैं। कुश्ती महासंघ की प्रतिक्रिया:
भारतीय कुश्ती महासंघ (WFI) के लिए भी यह एक बड़ी चुनौती है। पहले से ही भारतीय कुश्ती महासंघ कई विवादों से घिरा हुआ है, जिनमें महिला पहलवानों के उत्पीड़न के आरोप और अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ विरोध शामिल है। इस बैन से महासंघ की छवि पर भी असर पड़ सकता है, और यह सवाल उठता है कि वे खिलाड़ियों की उचित निगरानी और सपोर्ट कैसे कर रहे हैं।
क्या बजरंग अपील कर सकते हैं?
बजरंग पूनिया और उनकी टीम के पास WADA के इस फैसले के खिलाफ अपील करने का विकल्प है। आम तौर पर, ऐसे मामलों में खिलाड़ियों को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन फॉर स्पोर्ट्स (CAS) में अपील करने का अधिकार होता है। यदि वह अपील करते हैं और उनके पक्ष में फैसला आता है, तो यह बैन कम हो सकता है या पूरी तरह हटाया जा सकता है। यह इस बात पर निर्भर करेगा कि डोपिंग उल्लंघन की परिस्थितियां और साक्ष्य क्या हैं।
डोपिंग के खिलाफ सख्ती:
WADA और अन्य डोपिंग रोधी एजेंसियां खेलों में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए डोपिंग के खिलाफ सख्त कदम उठाती हैं। भारत में भी हाल के वर्षों में कई खिलाड़ी डोपिंग के मामलों में फंसे हैं। इस बैन से खिलाड़ियों के लिए एक संदेश जाता है कि डोपिंग किसी भी स्तर पर बर्दाश्त नहीं की जाएगी, चाहे वह कितना भी सफल खिलाड़ी क्यों न हो।
समाज और खेल पर संदेश:
बजरंग जैसे प्रतिष्ठित खिलाड़ी पर लगा बैन युवा खिलाड़ियों के लिए एक चेतावनी है। यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि खिलाड़ी किसी भी परिस्थिति में डोपिंग का सहारा न लें। खेल की शुचिता और निष्पक्षता बनाए रखना महत्वपूर्ण है।
निष्कर्ष:
बजरंग पूनिया पर 4 साल का बैन भारतीय खेल जगत के लिए एक महत्वपूर्ण घटना है। यह न केवल उनके करियर पर भारी असर डालेगा, बल्कि भारतीय कुश्ती और ओलंपिक उम्मीदों पर भी प्रभाव डालेगा। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि वह इस फैसले के खिलाफ अपील करते हैं या नहीं, और इसका उनके करियर पर क्या प्रभाव पड़ता है।
खबर वर्ल्ड24-बालकृष्ण साहू-छत्तीसगढ़