भारत में आय असमानता (Income Inequality) एक प्रमुख सामाजिक और आर्थिक मुद्दा है, जो पिछले कुछ दशकों में तेजी से बढ़ा है। आय असमानता का मतलब है कि देश की संपत्ति और आय कुछ लोगों के पास केंद्रित हो जाती है, जबकि बड़ी आबादी के पास कम संसाधन होते हैं। इसके परिणामस्वरूप, आर्थिक और सामाजिक असमानता बढ़ती है, जिससे गरीब और अमीर के बीच की खाई और गहरी होती जा रही है।
आइए समझते हैं कि भारत में आय असमानता कैसे बढ़ रही है, इसके मुख्य कारण क्या हैं, और इसका समाज और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है।
1. आय असमानता कैसे बढ़ रही है?
a. ऊंची आय वाले लोगों की संपत्ति में भारी वृद्धि
- भारत में अमीरों की संपत्ति तेजी से बढ़ रही है। हाल के वर्षों में, अरबपतियों की संख्या और उनकी कुल संपत्ति में भारी इजाफा हुआ है।
- 2023 में प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, भारत के 1% सबसे अमीर लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का लगभग 40% हिस्सा है। दूसरी ओर, गरीब और मध्यम वर्ग की संपत्ति स्थिर या घट रही है।
- ये असमानता इसलिए बढ़ी क्योंकि उच्च-आय वाले उद्योगों और व्यवसायों (जैसे टेक्नोलॉजी, फार्मास्युटिकल्स, और वित्त) में लगे लोगों ने आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण से बड़ा लाभ उठाया।
b. ग्रामीण और शहरी आय असमानता
- ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच आय असमानता भी तेजी से बढ़ी है। शहरी क्षेत्रों में नौकरी के अधिक अवसर और बेहतर वेतन के कारण आय अधिक है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को कृषि या छोटे उद्योगों पर निर्भर रहना पड़ता है, जहां आय कम होती है।
- यह असमानता रोजगार के अवसरों की कमी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की अपर्याप्तता, और बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति से और बढ़ जाती है।
c. कौशल और शिक्षा का अंतर
- भारत में शिक्षा और कौशल की असमानता भी आय असमानता को बढ़ा रही है। जो लोग उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त करते हैं, वे बेहतर नौकरियों और उच्च वेतन वाली नौकरियों तक पहुंच पाते हैं। दूसरी ओर, जिनके पास पर्याप्त शिक्षा और कौशल नहीं है, उन्हें कम वेतन वाली नौकरियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
- इस असमानता का सबसे बड़ा उदाहरण आईटी और वित्तीय क्षेत्रों में देखा जा सकता है, जहां उच्च कौशल वाले लोगों को उच्च वेतन मिलता है, जबकि कृषि और निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों को बहुत कम वेतन मिलता है।
d. आर्थिक सुधार और वैश्वीकरण
- 1991 में भारत में आर्थिक उदारीकरण के बाद से, बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ी और वैश्विक निवेश में इजाफा हुआ। इससे कुछ उद्योगों और व्यवसायों में बहुत तेजी आई, लेकिन इसका लाभ मुख्य रूप से उच्च वर्ग और मध्यम वर्ग ने उठाया। गरीब तबकों और छोटे व्यवसायों को इससे अपेक्षित लाभ नहीं मिला।
- वैश्वीकरण ने बड़े व्यवसायों को लाभ पहुंचाया, लेकिन कई छोटे और पारंपरिक व्यवसायों को नुकसान हुआ। इससे अमीरों और गरीबों के बीच आय में असमानता और गहरी हो गई।
e. टेक्नोलॉजी और स्वचालन
- तकनीकी विकास और स्वचालन (automation) ने भी आय असमानता को बढ़ावा दिया है। उच्च तकनीकी और कौशल वाली नौकरियों की मांग बढ़ी है, जबकि मजदूरों के लिए नौकरियों की संख्या में कमी आई है।
- स्वचालन के कारण विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों में कम कौशल वाली नौकरियों की मांग घट रही है, जिससे कई मजदूर और कर्मचारी बेरोजगार हो रहे हैं या कम वेतन वाली नौकरियों में काम कर रहे हैं।
2. आय असमानता के प्रमुख कारण
a. अपर्याप्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं
- गरीब तबकों के पास अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी है। इसके कारण वे उच्च-आय वाली नौकरियों के लिए आवश्यक कौशल नहीं प्राप्त कर पाते, जिससे वे निम्न-आय वाले कार्यों में फंसे रहते हैं।
- ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति खराब है, जिससे वहां की आबादी विकास की दौड़ में पिछड़ रही है।
b. असमान कर प्रणाली
- भारत की कर प्रणाली भी असमानता बढ़ाने में भूमिका निभाती है। हालांकि अमीरों पर उच्च कर दरें लगाई जाती हैं, लेकिन कर चोरी और टैक्स के अन्य छूट के कारण अमीर लोग अधिक कर से बच सकते हैं।
- इसके विपरीत, गरीब और मध्यम वर्ग के लोग अप्रत्यक्ष करों (जैसे वस्तु और सेवा कर, GST) का अधिक भार उठाते हैं, जिससे उनकी आय और खर्च की स्थिति प्रभावित होती है।
c. अधूरी नीतियां और कल्याणकारी योजनाओं की कमी
- गरीबों के उत्थान के लिए कई सरकारी योजनाएं लागू की जाती हैं, लेकिन अक्सर ये योजनाएं प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पातीं। भ्रष्टाचार, योजनाओं के संचालन में कमी, और प्रशासनिक विफलताएं इस बात को सुनिश्चित नहीं कर पातीं कि गरीब तबकों तक पर्याप्त सहायता पहुंचे।
d. शहरीकरण और ग्रामीण क्षेत्रों की अनदेखी
- शहरीकरण के चलते निवेश और विकास शहरी क्षेत्रों तक सीमित हो गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार और विकास के अवसरों की कमी ने वहां के लोगों को आर्थिक रूप से कमजोर बना दिया है, जिससे ग्रामीण-शहरी आय असमानता बढ़ रही है।
3. आय असमानता के प्रभाव
a. गरीबी का स्थायित्व
- आय असमानता के चलते गरीबी का दायरा व्यापक हो गया है। गरीब परिवार अपनी स्थिति से उबरने में असमर्थ होते हैं क्योंकि उनके पास पर्याप्त संसाधन नहीं होते हैं।
- गरीब और अमीर के बीच की खाई बढ़ने से सामाजिक असंतोष और अशांति का भी खतरा बढ़ जाता है।
b. अपराध और सामाजिक अशांति
- आय असमानता के चलते समाज में हताशा और असंतोष बढ़ता है। यह अपराध दर में वृद्धि और सामाजिक अशांति का कारण बन सकता है।
- लोग आर्थिक और सामाजिक असमानता से असंतुष्ट होकर अपराध का रास्ता अपना सकते हैं, जिससे समाज की स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
c. अवसरों की कमी
- आय असमानता के कारण गरीब तबकों के पास विकास के अवसर सीमित हो जाते हैं। वे शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार के बेहतर अवसरों से वंचित हो जाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार की संभावनाएं कम हो जाती हैं।
d. अर्थव्यवस्था पर प्रभाव
- आय असमानता अर्थव्यवस्था के समग्र विकास को बाधित कर सकती है। अगर बड़ी आबादी के पास खर्च करने की क्षमता नहीं होगी, तो उपभोक्ता मांग घटेगी, जिससे उत्पादन और रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
4. आय असमानता को कम करने के उपाय
a. शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार
- सरकारी स्तर पर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार किया जाना चाहिए, ताकि गरीब तबके के लोगों को उच्च-गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। यह उन्हें बेहतर नौकरियों के अवसर दिलाने में मदद करेगा।
b. कर सुधार
- कर प्रणाली में सुधार करके अधिक प्रगतिशील टैक्स व्यवस्था लागू की जानी चाहिए, जिसमें अमीरों पर अधिक कर और गरीबों पर कम कर हो। कर चोरों पर सख्ती से कार्रवाई की जानी चाहिए ताकि कर का बोझ गरीबों पर न पड़े।
c. समान रोजगार के अवसर
- सरकार को ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन और बुनियादी ढांचे के विकास पर जोर देना चाहिए, ताकि ग्रामीण-शहरी असमानता कम हो सके।
d. कल्याणकारी योजनाओं का सशक्त कार्यान्वयन
- सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू किया जाना चाहिए, ताकि गरीबों तक पर्याप्त सहायता पहुंच सके। इसके लिए भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना और प्रशासनिक सुधार आवश्यक हैं।
e. टेक्नोलॉजी और कौशल विकास में निवेश
- गरीबों और वंचित वर्गों के लिए कौशल विकास और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए ताकि वे रोजगार के बेहतर अवसर प्राप्त कर सकें। इससे उन्हें उच्च-आय वाली नौकरियों तक पहुंचने का मौका मिलेगा।
निष्कर्ष
भारत में आय असमानता एक जटिल समस्या है, जो विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और नीतिगत कारणों से बढ़ रही है। इसे नियंत्रित करने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, कर प्रणाली, और रोजगार नीतियों में सुधार आवश्यक है। जब तक आय असमानता को प्रभावी ढंग से नियंत्रित नहीं किया जाएगा, तब तक देश के समग्र आर्थिक विकास और सामाजिक स्थिरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता रहेगा।