महाभारत का युद्ध दुनिया का सबसे भीषण और खतरनाक युद्ध था। इसमें भाई-भाई से सत्ता के लिए भिड़ गए थे। खुद भगवान कृष्ण तक इस युद्ध से अपने आपको दूर नहीं रखा पाए थे। भीष्म पितामह महाभारत की ताकतवर शख्सियत थे। वह भले ही उम्र में बड़े थे, लेकिन उनमें शक्ति अपार थी। वह एक महान योद्धा थे। भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान मिला था, जिससे वह 58 दिन तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे थे। आखिर क्या कारण था कि उन्होंने तुरंत प्राण नहीं त्यागे थे।
युद्ध में निभाई जरूरी भूमिका
भीष्ण पितामह बहुत ही धार्मिक थे। वह हमेशा धर्म की तरफ ही रहे, लेकिन कर्तव्यों से बंधे होने की वजह से युद्ध में कौरवों का साथ देना पड़ा। वह एक शक्तिशाली योद्धा थे, इसलिए उनके रहते पांडवों का जीतना बहुत ही मुश्किल था। ऐसे में अर्जुन ने उन पर इतने बाणों के तीर छोड़े कि वह उठ ना सके। वह बुरी तरह घायल हो गए, लेकिन उन्होंने 58 दिन बात प्राण त्यागे।
इसका पहला कारण
भीष्ण पितामह बहुत ही धार्मिक थे। वह सूर्य उत्तरायण में ही अपने प्राणों को त्यागना चाहते थे। हिंदू धर्म में मान्यता है कि किसी व्यक्ति के अगर प्राण सूर्य उत्तरायण में निकलते हैं, तो उसकी आत्मा को मोक्ष मिलता है। उसको फिर से धरती पर जन्म नहीं लेना पड़ता है। भीष्म पितामह जब अर्जुन के तीरों से घायल थे, तब सूर्य दक्षिणायन था। उन्होंने प्राणों को त्यागने के लिए 58 दिन इंतजार किया। उसके बाद सूर्य उत्तरायण होने पर प्राणों को त्याग दिया।
इसका दूसरा कारण
भीष्म पितामह के 58 दिन बाद प्राण त्यागने का दूसरा कारण था कि वह हस्तिनापुर को सही हाथों में देखना चाहते थे। वह युद्ध के परिणामों को लेकर बहुत ही चितिंत थे। उनको लगता था कि कौरव जीत गए, तो हस्तिनापुर बर्बाद हो जाएगा। ऐसे में उन्होंने पांडवों को धर्म और नीति का ज्ञान दिया, जिससे वह राज्य की जिम्मेदारी का सही निर्वहन कर पाएं।