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 दुनिया की रंगी नियत ,खूबसूरती ..जीवन को सहेजने में  है ...जैसे तितलियों की खूबसूरती उनके रंग बिरंगे पंखों से है जंगलों की खूबसूरती उनके हरेपन से है.. पर्वतों की खूबसूरती उनके खड़े होने से है.. उसी तरह आसमान में परिंदे नहीं हो तो फिर मजा क्या है.. आपने नोटिस किया होगा हो सकता है कर रहे होंगे कि आजकल गौरेया नाम की चिड़िया कहीं कम तो कहीं से गायब होते दिख रही है पहले हर शहर ,कस्बे और गांव के साथ आंगन और छत पर 
फुदकने- फिरने वाली गौरैया अब काम होते दिख रही है ..खासकर वहां जहां शहरीकरण का रफ्तार तेज है क्या यह शहरीकरण का अनोखा साइड इफेक्ट है या मौसम में बदलाव इसकी वजह है या फिर चारा पानी या फिर पर्यावरण में परिवर्तन हो रहा है..?? जो हम देख नहीं पा रहे या फिर जानबूझकर अंधे बने हुए क्या आने वाले दिनों में छत की मुंडेर पर आंगन पर दाना चुगने वाली गौरैया गायब हो जाएगी... जानकारों का कहना है कि समय की अपनी रफ्तार है वह बहुत कुछ बदल देता है शहरीकरण की होड़ में बड़े शहर में प्रत्येक छोटे बड़े अपनी दुनिया में मशगूल है.. गए उनके पास गौरेया के लिए दाना डालने का समय ही नहीं है तो फिर गौरेया आंगन में आए क्यों ...शहरीकरण के नाम पर बड़ी-बड़ी इमारतें बन रही है पर शहरों से आंगन गायब हो रहे गौरेया की प्रजाति इनकी संख्या इनकी उपस्थिति पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं ...गायब होते पेड़ झाड़ ,कटते जंगल  और परिंदों को नजरअंदाज करते हमारे कारण अब आने वाले दिनों में ऐसा ना हो कि घर घर आने वाली गौरेया.. बच्चों की कहानी बन जाए...  गौरैया ,कौवा बटेर ,तीतर जैसे कई परिंदे हमारे कम होते सवेदनशीलता   के चलते संकट में है.. हम स्वच्छता की पर्यावरण की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं  महत्वपूर्ण  यह है  हमने पर्यावरण संतुलन और प्राकृतिक सौंदर्य बचाने के लिए  क्या कर रहे हैं ,खुद को कितना बदल रहे आप स्मार्ट सिटी बनाओ या ना बनाओ पर  इतना करो की परिंदों और तितलियों के लिए जगह हो.… ताकि आकाश के साथ  कल्पनाओं के आकाश और धरती पर रंगों का ताना-बाना कायम रहे... 
नवीन श्रीवास्तव, पत्रकार
 
 
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