::cck::26454::/cck::
::introtext::
नवीन श्रीवास्तव, पत्रकार
स्वामी विवेकानंद ... जिनके नाम मात्र से देश का नक्शाउजाले से भर जाता है, जिनके छबि दर्शन से अहसास होता है मानो सारे तरह के हीनता का विलोप हो गया हो..ओर जिनके शब्दों से रगो में बहता लहू गर्म होने लगता  है ..नैराश्य का अंधेरा  कहीं दुबक कर छुपने  में ही अपनी भलाई समझता है..आज उन्ही विवेकानंद की जयंती है..वर्षों वर्षो  बाद आज भी वे हमारे बीच हैं हमारे राष्ट्रीय चेतना के प्रयोगशाला में..राष्ट्र निर्माण के यज्ञ में उनके बताएं रास्तों के साथ उनके दर्शन को सबक के पाठ में शामिल करना बहुत जरूरी है ..स्थायी रूप से न केवल राष्ट्र, देश बल्कि ..किसी व्यायामशाला, योग, ध्यान की तरह उनके शब्दों में ऐसी शक्ति है जो देश के सरहदों से पार पूरी दुनियां में रहने वाले  दीन, हीन, दुर्बल और भरष्ट मनुष्यों के आत्मा को सकारात्मक अणुओं के विस्फोटक शक्ति से भर सकते है..आज जब बच्चे लल्ला लल्ला लोरी दारू की कटोरी जैसे धून पर नाच रहे है, जब युवा पीढ़ी आत्ममुग्ध हो  आइने के सामने खड़े खुद  को निहार रहे है.. आज जब मादक बाजार  सुन्दरियों के वेश में  हमारे बच्चों  के  कमर की हड्डियों को कमजोर बना रही है ।जब देश मे विरासत की दीवारों से चरित्र की तस्वीरें एक एक कर उतारी जा रही है..जब रात घिरते ही अपने देश प्रदेश शहर गॉव में अपनी ही बहु बेटियों की चिंता किसी शैतान की तरह दबोचने लगता है..जब स्त्रियों  को आज भी समानाधिकार का लालीपॉप देकर भोगा जा रहा है..यह कैसा दौर है जब देश के ज्यादातर युवा रोजगार के भिक्षा पात्र लिए दर दर के ठोकरें खा रहें है..कई कथित दलाल  रोजगार को बेचने की दुकान खोल बैठें है.. नींद से उठना जरूरी है ..ढेरों सवाल है, विवाद हैं, विषाद है, प्रतिषा द है .। किसी बेलगाम ताकत को लछ्य का अनुमान नही होता वह भागते रहता है..किसी बहते लावों की तरह धरती के साथ पर बैचेन ओर कमजोर सतह पाकर फिर फूट पड़ता है । युवा उर्जा भी  ज्वालामुखी की तरह होते है इनमे बहुमुल्य खनिज पदार्थों की तरह सपने भी होते है ..और उसे सच करने की हैसियत भी उन्हें बताना है  लछय हमेशा चांद पर रखो ..तो चांद ना सही सितारे तो दामन पर आकर गिरेंगे ही ..आज उन्हें यह बताने की जरूरत है कूछ कर गुजरने के लिए कोई समय तय हो जरूरी नहीं  बस उठकर खड़े होने की जरूरत है अगर ईमानदारी से स्वामी विवेकानंद जैसे व्यकितत्व को हम स्वीकार करते है,उन्हें सबक के पाठशाला में शामिल करते है तो  आज भी वे प्रासंगिक हो जीवंत हमारे बीच है ..उनके आदर्श, दर्शन और शब्दों की अमरता  आज भी प्रचंड  शक्ति से लैस  है इसे अगर नई पीढ़ी  आत्मसात  कर सके तो   उन्हें  महसूस होगा   कि धमनियों में बहता लहू गर्म हो रहा है . अपसंस्कृति के सारे बैक्टीरिया जलभुन खाक हो रहे  हैं .. जिस्म में देश और दूसरों के लिये कुछ कर  गुजरने का हौसला  इस तरह जागेगा की हर मुश्किलें आसान हो  जाएगी ..फिर तो तय है कि   वे खुद ही खड़े हो जाएंगे  विश्वास नहीं तो देखना उनके ..चेहरे पर बाजारू नही अंदर से  फुट रहा तेज प्रगट होगा.. उनके होठों में बुदबुदाहट होगी --चरैवेति. चरैवेति..प्रच ला म निरन्तर म..।। समाज और देश के लिए कुछ करने के लिए जुटे रहें.. क्या मिलता है इसकी फिक्र ना करें.. करना यही है कि यह धरती पराक्रमपूर्ण उदारता से भर जाए..(दिवस शुभ एवं मंगलमय हो..फिर मिलता हूं...
::/introtext::
::fulltext::::/fulltext:: ::cck::26454::/cck::