बिना लक्ष्य ...शक्ति का विध्वंस होते रहता है ..आज सब कुछ है किताबे है, विज्ञान है, रिश्ते हैं समाज है.. फिर भी अभी अधिसंख्य युवा लक्ष्य विहीन हाथ पैर मार रहे हैं बिना उद्देश्य उन्हें रास्ता कौन बतायेगा.. दरअसल खोट है ..जो समाज में बाजारू सिक्के की तरह चल रहा है जब किसी बेलगाम ताकत को लक्ष्य का अनुमान नहीं होता ..वह भागते रहता है किसी भी किसी भी बहते लावे की तरह धरती की सतह ..बैचेन और कमजोर सतह पाते ही एक दिन ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ते हैं युवा उर्जा भी ज्वालामुखी की तरह होता है ..इस ऊर्जा में खनिज संपदा की तरह सपने भी होते हैं ..पर जब इसे संस्कार विहीन परिवेश मिलता है तो वह समय पर अपना मूल्यांकन नहीं कर पाता ... यह कैसा दौर है जब अधिसंख्य युवा रोजगार के सवाल को लेकर भिक्षा के पात्र लिए दर-दर की ठोकरे खा रहे हैं?? रोजगार आखिर कब से सामंती बाजार में दुकान बन गए.. कब किसने गिरवी रख दिया देश के युवा उर्वरा मस्तिष्क को ...जो ना केवल अपने रोजगार बल्कि जीवन संग्राम को किसी योद्धा की तरह जीने की ताकत रखते हैं पर जिस तरह से रोजगार और भौतिक जीवन की लालसा को गर्भ अवस्था से ही जोड़ने षड़यंत्र हुआ है बच्चे भी लगता है अयोग्य पैदा हो रहे हैं..!! पैदा होते ही बाजार में तब्दील समाज में वह जब खुशियां तलाशने जाता है तब पता चलता है यहां सब कुछ बिकता है ..और जब बिकता है तो खरीदने के लिए रुपए पैसों की बोरियां आखिर सब लोग कहां से लाएं .. इसी फेर में ऐसे युवाओं की ,बेरोजगारों की कमी नहीं जिनके चेहरे पर समय से पहले ही झुर्रियां निकाल आई है आंखों में आत्मविश्वास की जगह हताशा और निराशा के अंधकार का पर्दा लहराने लगा है पर विकास के नाम पर ढ़ोल पीटने वाले तुम्हें यह कैसा दिखेगा.. सवाल समस्याओं पर विचार करने का नहीं है सवाल यह है कि यह सब कैसे चल रहा है औऱ कब तक चलेगा...